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छूइए
मगर हौले से
कि यह कविता
शमशेर की है।
और यह जो
एक-आध पांखुरी
बिखरी सी पड़ी है न?
इसे भी
न हिलाना।
बहुत मुमकिन है
किसी मूड में
शमशेर ने ही
इसे ऐसे रक्खा हो।
शरीर में जैसे
हर चीज़ अपनी जगह है
शमशेर की कविता है।
देखो
शब्द समझ
कहीं पांव न रख देना
अभी गीली है
जैसे आंगन
मां ने माटी से
अभी-अभी लीपा है
शमशेर की कविता है।
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